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तेंदुलकर ने रील शेयर की, उस सुशीला की रियल स्टोरी:कच्चा मकान, चूल्हे पर खाना, वीडियो के बाद इतने लोग आए कि दूध-चीनी खत्म

क्रिकेट के भगवान सचिन तेंदुलकर ने जैसे ही ये लिखकर वीडियो शेयर किया। कुछ ही मिनटों में प्रतापगढ़ के धरियावद तहसील की 12 साल की सुशीला मीणा देशभर में चर्चित हो गई। क्रिकेटर जहीर खान, बिजनेसमैन आनंद महिंद्रा, राजस्थान की डिप्टी CM दीया कुमारी और आप सांसद संजय सिंह जैसे बड़े लोगों ने तारीफों के पुल बांध दिए।

लेकिन सुशीला की कहानी सिर्फ 30 सेकेंड की रील भर नहीं है। रील से इतर सुशीला की रियल स्टोरी जानने के लिए भास्कर टीम उनके घर पहुंची।

दो साल से सिलेंडर नहीं भरवाया सुशीला के पिता रतन मीणा अहमदाबाद में मजदूरी करते हैं। पहले मां शांतिबाई भी मजदूरी करती थीं। अब बच्चों की पढ़ाई के लिए घर संभालती हैं। रतन ने बताया कि 2017 में प्रधानमंत्री ग्रामीण आवास योजना के तहत गांव में ही छोटा प्लॉट मिला था। पहली किस्त के बाद घर का काम पूरा नहीं करवा सके।

पत्नी की बीमारी में योजना के तहत मिले 80,000 रुपए खर्च हो गए। एक बाइक ली थी। उसकी भी दो महीने की किस्त बाकी है। सरकार की ओर से गैस चूल्हा और LPG कनेक्शन मिला था। बीते दो साल से सिलेंडर नहीं भरवाया है। शांति चूल्हे पर ही खाना बनाती हैं। शांति ने बताया कि सुशीला का वीडियो सामने आने के बाद रविवार को इतने मेहमान आए कि चीनी-दूध खत्म हो गया।

जिस घर में रह रहे हैं वह छप्पर और घास–फूस से बना है। इसी घर में सुशीला माता-पिता और दो भाई रवीन्द्र और जितेन्द्र के साथ रहती हैं। रतन कहते हैं मुफ्त बिजली का भी कोई लाभ नहीं, क्योंकि गांव में लाइट बहुत कम रहती है। घर में न टीवी है न कोई अन्य सुविधा। पढ़ाई के लिए तीनों भाई–बहन इमरजेंसी लाइट का इस्तेमाल करते हैं। रतन बोले कि मेरे पास बेटी के क्रिकेट का सामान खरीदने का भी पैसा नहीं है। भामाशाह अब मदद कर रहे हैं तो उम्मीद है बेटी आगे बढ़ सकेगी।

कई बड़े लोग सुशीला से फोन पर बात कर रहे हैं या मिलने आ रहे हैं, लेकिन अभी तक किसी ने मदद का जज्बा नहीं दिखाया है।

स्कूल के पास लेदर बॉल खरीदने तक के पैसे नहीं गांव के जिस प्राइमरी स्कूल में सुशीला पढ़ती है, वहां न ग्राउंड है न खेलने की सुविधा। क्रिकेट खेलने का सामान भी सुशीला को उनके अध्यापक ईश्वरलाल ने खरीदकर दिया है। वायरल वीडियो में जिस जगह सुशीला बॉलिंग करते दिख रही है वह स्कूल का कंपाउंड है।

सुशीला पहले यहीं दीवार पर कोयले से विकेट बनाकर वह प्रैक्टिस करती थी। किट आने के बाद विकेट के सामने बॉल करने लगीं। जर्जर स्कूल में 9 अध्यापक थे। कुछ महीने पहले एक साथ चार अध्यापकों का ट्रांसफर हो गया। तब से कोई टीचर नहीं आया है। पांच अध्यापकों के भरोसे स्कूल के सारे बच्चे हैं।

स्कूल के बाद ईश्वर बच्चों को प्रैक्टिस करवाते हैं। लेदर बॉल महंगी होने के कारण वह टेनिस बॉल से प्रैक्टिस करती हैं। स्कूल ही नहीं पूरे गांव और धरियावद में बच्चों के खेलने के लिए कोई ग्राउंड नहीं है।

प्रतापगढ़ और धरियावद के सरकारी अधिकारी, राजनेता और प्रतापगढ़ विधायक राजस्व मंत्री हेमंत मीणा भी सुशीला से मिलने आए। भास्कर ने जब गांव में सुविधा बढ़ाने का सवाल किया तो किसी के पास जवाब नहीं था। मंत्री जी वायरल वीडियो को ही मदद पाने की व्यवस्था बताकर चले गए।

तीन साल पहले शुरू किया खेलना, 12 महीने में सीखा एक्शन सुशीला ने बताया कि उन्हें क्रिकेट का शौक तीन–चार साल पहले लगा। उनके ताऊ की बेटी रेणुका मीणा भी कुछ समय पहले ऐसे ही बैटिंग करते वायरल हुई थीं। अब वह जयपुर में ट्रेनिंग कर रही हैं। उससे भी काफी प्रेरणा मिली।

बीते तीन साल से स्कूल में अपने टीचर ईश्वरलाल मीणा के साथ क्रिकेट की बारीकियां सीख रही हैं। साल भर पहले इस तरह का हाई आर्म एक्शन करना चालू किया। करीब 1 साल दिन-रात प्रैक्टिस कर एक्शन को सुधारा। सुशीला का कहना है कि-

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