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राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ यानी RSS 99 साल का हो गया। 1925 में विजयादशी के दिन पांच स्वंयसेवकों के साथ डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार ने इसकी शुरुआत की थी। आज संघ के लाखों स्वयंसेवक हैं। संघ के मुताबिक ब्रिटेन, अमेरिका, फिनलैंड, मॉरीशस समेत 39 देशों में उसकी शाखा लगती है। 99 साल के इस सफर में तीन बार संघ पर बैन लगा। संघ प्रमुख को जेल तक जाना पड़ा।

साल 1919, पहले विश्व युद्ध के बाद ब्रिटेन ने ऑटोमन साम्राज्य के टुकड़े-टुकड़े कर दिए। अंग्रेजों ने तुर्की के खलीफा यानी मुसलमानों के सबसे बड़े धार्मिक नेता को सत्ता से हटा दिया। इसका दुनियाभर के मुसलमानों ने विरोध किया। गुलाम भारत के मुसलमान भी अंग्रेजों के खिलाफ सड़कों पर उतर गए।

डॉक्टरी पढ़कर नए-नए कांग्रेसी बने नागपुर के केशव बलिराम हेडगेवार को गांधी का यह फैसला सही नहीं लगा। हेडगेवार की जीवनी लिखने वाले सीपी भिशीकर अपनी किताब ‘केशव : संघ निर्माता’ में लिखते हैं- ‘हेडगेवार ने गांधी से कहा कि खलीफा का समर्थन करके मुसलमानों ने ये साबित कर दिया कि देश से पहले उनका धर्म है। कांग्रेस को इस आंदोलन का समर्थन नहीं करना चाहिए।’

हालांकि गांधी ने हेडगेवार की बात नहीं मानी और खिलाफत आंदोलन के समर्थन की घोषणा कर दी। न चाहते हुए भी हेडगेवार इस आंदोलन से जुड़े रहे और उग्र भाषण देने की वजह से अगस्त 1921 से जुलाई 1922 तक जेल में भी रहे।

अगस्त 1921, खिलाफत आंदोलन केरल पहुंचा। यहां के मालाबार इलाके में मुसलमानों और हिंदू जमींदारों के बीच झड़प हो गई, जो जल्द ही एक बड़े दंगे में तब्दील हो गई। इस दंगे में 2 हजार से ज्यादा लोगों की जान गई।

डॉ. भीमराव अंबेडकर ने इस दंगे का जिक्र करते हुए अपनी किताब ‘थॉट्स ऑन पाकिस्तान’ में लिखा- ‘इस विद्रोह का मकसद ब्रिटिश हुकूमत को खत्म कर इस्लाम राज की स्थापना करना था। तब जबरन धर्म परिवर्तन कराए गए, मंदिर ढहाए गए, महिलाओं के साथ बलात्कार हुए।’अंबेडकर ने खिलाफत आंदोलन पर सवाल उठाते हुए लिखा- ‘यही गांधी की हिंदू-मुस्लिम एकता कायम करने की कोशिश है। क्या फल मिला इस कोशिश का?’

शौकत अली और मोहम्मद अली नाम के दो भाइयों ने लखनऊ में ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ मोर्चा खोल दिया। इसे नाम दिया गया खिलाफत आंदोलन। मकसद था- खलीफा को तुर्की के सिंहासन पर दोबारा बैठाना। जल्द ही देशभर के मुसलमान इस आंदोलन से जुड़ गए।

ये वो दौर था जब जलियांवाला बाग हत्याकांड हो चुका था। पंजाब में मार्शल लॉ लगा हुआ था। देशभर में रौलेट एक्ट यानी बिना मुकदमा चलाए किसी को जेल में बंद करने की ब्रितानी हुकूमत की नीतियों का विरोध हो रहा था।

चार साल पहले साउथ अफ्रीका से लौटे महात्मा गांधी अंग्रेजों के खिलाफ एक बड़े आंदोलन की तैयारी में जुटे थे। खिलाफत आंदोलन को उन्होंने एक मौके के रूप में देखा कि इसके जरिए हिंदुओं और मुसलमानों को एक मंच पर लाया जा सकता है।

गांधी ने एक नारा दिया- ‘जिस तरह हिंदुओं के लिए गाय पूज्य है, उसी तरह मुसलमानों के लिए खलीफा।’

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