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अक्षय कुमार रात में शूट नहीं करते:लाइटिंग खराब हो तो चिल्लाने लगते हैं धर्मेंद्र; जब सुभाष घई की बात पर चिढ़े सिनेमैटोग्राफर

हम फिल्मों में एक्टर और डायरेक्टर के काम की बात करते हैं। हालांकि, एक शख्स को शायद ही याद रखते हैं जो पर्दे के पीछे सबसे ज्यादा मेहनत करता है। हम बात कर रहे हैं, सिनेमैटोग्राफर की। कहानी को चलती-फिरती फिल्म में तब्दील करने का काम यही करते हैं।

भारी-भरकम कैमरा हैंडलिंग, सीन विजुअलाइजेशन और डायरेक्टर के विजन को समझकर पूरी फिल्म शूट करना आसान नहीं होता। एक तरह से इन्हें कैमरे के पीछे का कलाकार कहा जा सकता है। सिनेमैटोग्राफर को DOP (डायरेक्टर ऑफ फोटोग्राफी) भी कहते हैं।

रील टु रियल के नए एपिसोड में बात सिनेमैटोग्राफी की। इसके लिए हमने मशहूर सिनेमैटोग्राफर असीम बजाज और कबीर लाल से बात की। इन दोनों ने फिल्म मेकिंग से जुड़े कुछ दिलचस्प किस्से भी उजागर किए।

इन्होंने बताया कि कई सारे फिल्म स्टार्स सिनेमैटोग्राफी में काफी दिलचस्पी दिखाते हैं। वे कैमरा एंगल, फोकस और लाइटिंग पर विशेष ध्यान देते हैं। अक्षय कुमार एक ऐसे एक्टर हैं, जो रात में शूट करना पसंद नहीं करते। वे दिन की लाइट में अपने सारे सीक्वेंस फिल्माते हैं।

दिग्गज एक्टर धर्मेंद्र लाइटिंग पर विशेष ध्यान देते हैं। अगर सेट पर लाइटिंग थोड़ी भी इधर-उधर हुई तो सिनेमैटोग्राफर पर चिल्लाने लगते हैं।

कई बार रात का सीक्वेंस दिन में फिल्माना पड़ता है कई एक्टर्स रात में शूट नहीं करते। ऐसे में रात का सीक्वेंस भी दिन में फिल्माना पड़ता है। यहां सिनेमैटोग्राफर का रोल बढ़ जाता है। यहां सीन को ऐसे शूट करते हैं कि बादल या आसमान दिखें ही न। इससे लाइट कम हो जाती है और स्क्रीन पर अंधेरा टाइप दिखने लगता है। हालांकि, शूट के बाद भी काम खत्म नहीं होता। पोस्ट प्रोडक्शन के दौरान सीन में नाइट फिल्टर भी लगाया जाता है। तब जाकर सीन कम्प्लीट होता है।

असीम बजाज के मुताबिक, एक सिनेमैटोग्राफर को टेक्निकल नॉलेज से ज्यादा आर्ट की जानकारी होनी चाहिए। कैमरे को तो कोई भी हैंडल कर सकता है। फिल्में शूट करना, फोटो खींचना या वीडियो बनाना भी कोई बड़ी बात नहीं है। सिनेमैटोग्राफर को साहित्य की किताबें पढ़नी चाहिए। अगर उसे कला और साहित्य की जानकारी होगी, तभी डायरेक्टर के विजन को समझ पाएगा।

शूटिंग के दौरान भारी-भरकम कैमरा हैंडल करने वाले शख्स को कैमरा ऑपरेटर कहते हैं। वो सीन के हिसाब से कैमरे को मूव करता है। उसका काम बस लाइव इवेंट को कैप्चर करना है। वहीं सिनेमैटोग्राफर साइड में बैठकर फोकस, लाइटिंग, फ्रेम और एक्टर्स की मूवमेंट देखता है। वो कैमरा ऑपरेटर को हैंडलिंग सिखाता है।

एक सिनेमैटोग्राफर की टीम में 7 से 8 लोग होते हैं। इसमें चीफ कैमरामैन, फोकस पुलर और असिस्टेंट कैमरामैन होते हैं। हालांकि फिल्म की स्केल के हिसाब से यह संख्या बढ़ भी सकती है।

अब यह फोकस पुलर कौन होता है? DOP के साथ एक और कैमरामैन खड़ा रहता है, उसे फोकस पुलर कहते हैं। वो ऑब्जेक्ट पर हर वक्त फोकस बनाकर रहता है। ऑब्जेक्ट कितनी दूरी पर है, कितना हिल-डुल रहा है, वो एक-एक इंच की गणना करता है। अगर फोकस पुलर का ध्यान थोड़ा भी इधर-उधर भटका तो सीन खराब हो सकता है।

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