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1- शैलपुत्री माता मंदिर वाराणसी, उत्तर प्रदेश/बारामूला, कश्मीर

पौराणिक साहित्य में नौ नामों से प्रकीर्तिता नवदुर्गा में प्रथम हैं शैलपुत्री। शैलपुत्री यानी हिमालय सुता भगवती पार्वती। माता शैलपुत्री का मंदिर मोक्षनगरी काशी में वरुणा सरिता के निकट अवस्थित है। यहां देवी शैलपुत्री का सुंदर विग्रह है जिसके दर्शन के लिए नवरात्र में श्रद्धालु देश के विभिन्न भागों से जुटते हैं। हिमालय पुत्री होने से शैलपुत्री कहलाईं माता के मंदिर पहाड़ों में भी द्रष्टव्य हैं। कश्मीर के झेलम के किनारे बारामूला में देवी शैलपुत्री का मंदिर मौजूद है, जो माता खीर भवानी की नौ बहनों में से एक हैं। मंदिर प्रथा के अनुसार केवल कुमारी कन्याएं ही मुख्य मंदिर के भीतर भोग और स्वच्छता नियोजन का कार्य करती हैं।

2- ब्रह्मचारिणी माता मंदिर वाराणसी, उत्तर प्रदेश

ब्रह्म चारयितुं शीलं यस्या: सा ब्रह्चारिणी अर्थात् जो सच्चिदानंदमय ब्रह्मस्वरूप की प्राप्ति कराना जिसका स्वभाव हो वे ब्रह्मचारिणी हैं। बाबा विश्वनाथ की नगरी काशी में ही कर्णघंटा क्षेत्र में मां ब्रह्मचारिणी देवी का मंदिर भी मौजूद है। सदानीरा मां गंगा के किनारे बालाजी घाट पर स्थित इस मंदिर में श्रीमाता का सुखकर्ता, समृद्धिदायक और मनोकामना पूर्ण करने वाला विग्रह स्तुत्य है।

3- चंद्रघण्टा माता मंदिर प्रयागराज व काशी, उत्तर प्रदेश

चन्द्र: घण्टायां यस्या सा चंद्रघण्टा अर्थात् जो चंद्रमा की भांति शीतल, ज्ञान-प्रकाशदायिनी है, उन्हें चंद्रघण्टा कहा जाता है। देवी चंद्रघण्टा के मस्तक पर घण्टे के आकार का अर्द्धचंद्र सुशोभित है। तमिलनाडु के कांचीपुरम में भगवती चंद्रघण्टा के रूप में देवी पूजा की जाती है। वहीं त्रिवेणी संगम की नगरी प्रयागराज में और वाराणसी में भी मां चंद्रघण्टा का मंदिर स्थित है, जहां नवरात्र के अवसर पर विशेष भीड़ जुटती है।

4- कूष्मांडा माता मंदिर घाटमपुर, कानपुर, उत्तर प्रदेश

नवरात्र के चतुर्थ दिवस की अधिष्ठात्री देवी हैं मां कूष्मांडा। उत्तर प्रदेश के कानपुर जिले के घाटमपुर कस्बे में देवी कूष्मांडा का प्राचीन मंदिर अवस्थित है। यहां देवी पिंडी स्वरूप में दो मुख के साथ विराजी हैं, जहां श्रद्धालुओं के आश्चर्य का स्रोत पिंडी से सदा रिसता जल है जिसे पवित्र आशीष मानकर भक्त सिर-माथे पर लगाते हैं। मराठा शैली में निर्मित मंदिर की निर्माण तिथि पर इतिहासकार एकमत नहीं हैं, परंतु स्थानीय लोककथाओं में मां कूष्मांडा के मंदिर की कीर्ति अक्षुण्ण है।

5- स्कंदमाता मंदिर विदिशा, मध्यप्रदेश/काशी, उत्तर प्रदेश

उमामहेश पुत्र षण्मुख कार्तिकेय स्कंद कहलाते हैं, जिससे देवी का एक नाम स्कंदमाता है। स्कंदमाता का आलय वाराणसी के जगतपुरा क्षेत्र के बागेश्वरी देवी मंदिर परिसर में है। देवी विग्रह की गोद में स्कंद बालरूप में विराजमान हैं। स्कंदमाता का एक अन्य मंदिर विदिशा में है जहां देवी दुर्गा की पूजा स्कंदमाता स्वरूप में होती है। तमिलनाडु के सेलम के निकट स्कंदगिरि पर भी देवी दुर्गा स्कंदमाता स्वरूप में पूज्य हैं।

6- मां कात्यायनी मंदिर वृंदावन, उत्तर प्रदेश

श्रीराधारानी के अधीन श्रीकृष्ण की लीलास्थली श्रीधाम वृंदावन में मां कात्यायनी का प्राचीन मंदिर स्थित है। महर्षि कात्यायन के तप से प्रसन्न देवी मां ने उनके घर पुत्री रूप में जन्म लिया था। मान्यता है कि कात्यायनी शक्तिपीठ पर राधारानी ने श्रीकृष्ण को पति रूप में वरने के लिए देवी आराधना की थी।

7- कालरात्रि माता मंदिर वाराणसी, उत्तर प्रदेश

देवी माता के सातवें स्वरूप के रूप में मां कालरात्रि प्रतिष्ठित हैं। कालरात्रि स्वरूप में देवी ने असुरों का संहार किया इसलिए उनकी प्रतिमा उग्र स्वरूप में पूजी जाती है। वाराणसी में मां कालरात्रि का मंदिर दशाश्वमेध मार्ग पर स्थित है। बिहार के सोनपुर के नयागांव डुमरी में भी मां कालरात्रि का प्रसिद्ध मंदिर है जहां पिंडी रूप मां शक्ति स्थापित हैं।

8- महागौरी माता मंदिर काशी, उत्तर प्रदेश

देवी शक्ति के आठवें स्वरूप में पूज्य महागौरी माता की मुद्रा अत्यंत शांत और रूप गौरवर्णा है। सुप्रसिद्ध काशी विश्वनाथ के निकट स्थित अन्नपूर्णा देवी मंदिर में स्थापित विग्रह को मां महागौरी की मान्यता दी गई है। कथा है कि महादेव को वर रूप में पाने के लिए देवी पार्वती ने कठोर तप किया था, जिससे उनका रूप कृष्ण वर्णी हो गया था। तप से प्रसन्न होकर शंकर जी ने गंगा जल से देवी की कांति को पुनः लौटाया।

9- सिद्धिदात्री माता मंदिर छिंदवाड़ा, मध्यप्रदेश

समस्त सिद्धियों की दात्री मां सिद्धिदात्री हैं। नवम दिवस की अधिष्ठात्री देवी मां सिद्धिदात्री का प्रसिद्ध मंदिर मध्यप्रदेश के छिंदवाड़ा जिले में है। चतुर्भुज रूप में सिंहासनारूढ़ माता कमल पुष्प पर विराजमान हैं। भगवती सिद्धिदात्री का एक मंदिर वाराणसी में भी है जहां देवी विग्रह कृष्ण वर्ण में स्थापित है।

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