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उत्तर प्रदेश का एक जिला हमीरपुर। हमीरपुर में एक छोटा सा कस्बा है राठ। 2004 में राठ का रहने वाला एक 23 साल का नौजवान लड़का एक्टर बनने का सपना लेकर मुंबई आया।

चूंकि मुंबई में रहने का ठिकाना नहीं था, तो 4 रात स्टेशन पर रहा। आगे काम की तलाश में इधर-उधर भटकने लगा। भाग्य ने साथ दिया तो एक दिन क्लोरोमिंट की ऐड फिल्म मिल गई। वो ऐड रिलीज होते ही काफी फेमस हो गया।

उसी ऐड फिल्म की बदौलत पहले टेलीविजन शो FIR, फिर भाबी जी घर पर हैं में काम करने का मौका मिला।

उस एक्टर ने ऐसा काम किया कि चैनल वालों ने उसके नाम पर सीधा एक शो ही बना दिया। उस शो का नाम है- हप्पू की उलटन-पलटन, और हम बात कर रहे हैं दरोगा हप्पू सिंह यानी योगेश त्रिपाठी की।

योगेश त्रिपाठी की गिनती आज टीवी के सफलतम कलाकारों में होती है। हालांकि, इसके पीछे उनका सालों लंबा संघर्ष है। शुरुआती दिनों में वे नुक्कड़ नाटक करते थे। इससे उन्हें सिर्फ 75 रुपए मिलते थे।

हप्पू सिंह यानी योगेश त्रिपाठी की सफलता की कहानी, उन्हीं की जुबानी

पिता फिजिक्स के लेक्चरर थे, मां की वजह से फिल्मों में रुझान पैदा हुआ योगेश त्रिपाठी एक साधारण मिडिल क्लास फैमिली से आते हैं। उनके पिता फिजिक्स के लेक्चरर थे। घर पर सिर्फ पढ़ाई-लिखाई का माहौल था, लेकिन योगेश के सपने कुछ और थे। मां को फिल्में देखने और दिखाने का शौक था। मां की वजह से योगेश के अंदर भी फिल्मों को लेकर रुझान पैदा हो गया।

मुंबई जाने वाली ट्रेन को छूकर ही खुश हो जाते थे योगेश के अंदर बचपन से अभिनय को लेकर शौक पैदा हो गया था। वे गांव-दराज में ड्रामा करने लगे। हालांकि, वे खुद को पर्दे पर दिखाना चाहते थे। उन्होंने समझ लिया कि अगर स्क्रीन पर दिखना है तो मुंबई का सफर तय करना पड़ेगा।

उन्होंने कहा, ‘हमारे लिए मुंबई के बारे में सोचना ही बहुत बड़ी बात थी। एक बार रेलवे की जॉब के लिए फॉर्म भर दिया था। एग्जाम सेंटर जानबूझकर मुंबई डाला था, ताकि वहां जाने का मौका मिले। झांसी तक पहुंचने पर पता चला कि एग्जाम कैंसिल हो गया है।

फिर हम झांसी में ही उतर गए। चूंकि अब मुंबई जा नहीं सकते थे, इसलिए ट्रेन छूकर ही वापस घर आ गए। मुंबई जाने वाली ट्रेन को छूना ही उस वक्त बड़ी बात थी।’

लोगों को चाय पिलाई, फर्श पर पोंछे लगाए समय के साथ योगेश को एहसास हुआ कि बिना किसी बेस के मुंबई जाना सही नहीं होगा, इसलिए उन्होंने पहली मंजिल लखनऊ को बनाया। उन्होंने कहा, ‘मैं पढ़ाई का बहाना बनाकर लखनऊ आ गया और वहां थिएटर जॉइन कर लिया। मैंने समझ लिया था कि बिना किसी गॉडफादर के मुंबई जाना सही नहीं होगा।

हालांकि, लखनऊ में स्ट्रगल बहुत करना पड़ा। वहां कई-कई घंटे सीढ़ियों पर बैठकर गुजारना पड़ता था। लोगों को चाय पिलानी पड़ती थी। फर्श पर पोंछा लगाना पड़ता था।’

घूम-घूम कर नुक्कड़ नाटक करने लगे, 75 रुपए मिलते थे लखनऊ में थिएटर करने के दौरान योगेश को एक बार नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा (NSD) जाने का मौका मिला। वहां जाकर उनकी आंखें खुल गईं।

उन्होंने कहा, ‘एक बार NSD के वर्कशॉप के लिए मेरा सिलेक्शन हो गया। वहां मुझे एक प्ले करने का मौका मिला। NSD जाकर पता चला कि असली थिएटर होता क्या है। इसके बाद दिन-रात सिर्फ थिएटर के बारे में सोचने लगा। घूम-घूम कर नुक्कड़ नाटक करने लगा। पांच-पांच शोज करता था, जिसके लिए 75 रुपए मिलते थे।’

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