उदयपुर लेपर्ड के खौफ में है। लैपर्ड अब तक 9 लोगों की जान ले चुका है। शुक्रवार को कमोल गांव में पशुओं पर हमला कर रहे लेपर्ड को ग्रामीणों ने धारदार हथियार से मार डाला। हालांकि अभी तक वन विभाग ने इस बात की पुष्टि नहीं की है कि ये आदमखोर था या नहीं?
राजस्थान में आदमखोर लेपर्ड का ये पहला मामला नहीं है। 19 साल पहले प्रतापगढ़ में भी लेपर्ड ने आतंक मचाया था। 16 अटैक किए, जिसमें 13 लोगों की मौत हो गई थी।
उस लेपर्ड ने भी कई बार चकमा दिया घटना 2005, दिसम्बर महीने की है। प्रतापगढ़ के देवगढ़ रेंज में एक लेपर्ड ने आतंक मचा रखा था। देवगढ़ रेंज के पूर्व रेंजर विजय सिंह बताते हैं- इस लेपर्ड ने पहला अटैक प्रतापगढ़ के छोटी सादड़ी में सियाखेड़ी गांव में किया। एक महिला पर हमला कर उसे मार दिया। इस घटना के बाद मौतों का सिलसिला शुरू हुआ, जो 13 जान लेने के बाद थमा।
लेपर्ड को पकड़ने के लिए संभावित जगहों पर पिंजरे लगाए गए। शिकार भी बांधा गया, लेकिन लेपर्ड को पकड़ा नहीं जा सका। इसी दौरान एक लेपर्ड को आदमखोर बताकर मार दिया गया। इसके बावजूद इंसानों पर हमले नहीं थमे।
करीब दो महीने शांति रही। इसके बाद फिर हमले शुरू हो गए। सर्च ऑपरेशन के दौरान ही एमपी बॉर्डर के नजदीक नीमच के पास पिंजरा लगाया गया, जहां एक लेपर्ड कैद हुआ। उसे भोपाल के चिड़ियाघर में छोड़ा, लेकिन वो आदमखोर नहीं था।
मार्च 2006 में वन विभाग के पिंजरे में एक लेपर्ड कैद हुआ। इसे ही आदमखोर माना गया। क्योंकि इसके पकड़े जाने के बाद मौतों का सिलसिला थम गया। विजय सिंह बताते हैं कि उसके बाद वो पांच साल उसी इलाके में रेंजर रहे, लेकिन कभी दोबारा ऐसी घटना नहीं हुई।
13 जान लेने वाले लेपर्ड का नाम ‘अमजद खान’ पूर्व रेंजर विजय सिंह बताते हैं- प्रतापगढ़ में बुजुर्ग लेपर्ड ने ही इंसानों पर हमले किए थे। पकड़े गए लेपर्ड के दांत उखड़े हुए थे। वह जानवरों का शिकार करने की स्थिति में नहीं था। इसी वजह से उसने इंसानों पर हमला करना शुरू कर दिया था।
उसे पकड़ने के बाद जयपुर के चिड़ियाघर में छोड़ा गया। यहां उसका नाम ‘अमजद खान’ रखा गया। ये लेपर्ड बुजुर्ग होने के कारण केवल बच्चों और बुजुर्ग महिला व पुरुष को ही अपना शिकार बनाता था।
गोगुंदा रेंज के सर्च ऑपरेशन में शामिल उदयपुर के उप वन संरक्षक मुकेश सैनी प्रतापगढ़ की घटना के समय एसीएफ के पद पर तैनात थे। प्रतापगढ़ में चले इस बड़े सर्च ऑपरेशन के बारे में उन्होंने बताया कि लेपर्ड ने शुरू में 3 लोगों को मारा था। इसके बाद कुछ समय तक शांति रही। इसके बाद 3 महीने में ही उसने 10 और लोगों की जान ले ली।
सर्च ऑपरेशन के दौरान वन विभाग की टीम ने 6 लेपर्ड को पकड़ा। हमले सातवें लेपर्ड को पकड़ने के बाद रुके। वे बताते हैं कि गोगुंदा में 18 सितंबर से एक अक्टूबर तक लेपर्ड ने 9 लोगों की जान ली है। वन विभाग की कोशिश है कि अब और मौत न हो।