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14 अक्टूबर 1956 यानी आज से ठीक 68 साल पहले। दशहरे का दिन था। डॉ. भीमराव अंबेडकर तड़के ही उठ गए। स्नान किया और दीक्षा भूमि की तरफ रवाना हो गए। रास्ते में दोनों तरफ बेशुमार भीड़ थी। उत्साह में हर तरफ बाबा साहब की जय-जयकार गूंज रही थी।

पूरे नागपुर और आसपास के कस्बों में सफेद कपड़े की कमी पड़ गई थी, क्योंकि अंबेडकर ने अपने अनुयायियों से बौद्ध धर्म अपनाने के समय नए और धुले हुए सफेद कपड़े पहनने को कहा था।

बाबा साहेब जैसे ही पंडाल में पहुंचे, उन्हें मंच पर ले जाया गया। एक हाथ में लाठी के सहारे से वे खड़े हुए। लोगों ने तालियों से उनका अभिवादन किया। मंच पर 83 वर्षीय महास्थविर चन्द्रमणि ने उन्हें धम्म दीक्षा दी।

दीक्षा के बाद बाबा साहेब ने कहा- अपने पुराने धर्म को त्यागकर जो असमानता और दमन पर आधारित है, मैं आज पुनः जन्मा हूं। नागपुर में हुई इस घटना को इतिहास में धर्म परिवर्तन की सबसे बड़ी घटना के तौर पर याद किया जाता है।

अंबेडकर ने हिंदू धर्म क्यों छोड़ा? अंबेडकर के हिंदू धर्म छोड़ने के पीछे कई कारण हैं। डॉ. भीमराव अंबेडकर ने अपनी बायोग्राफी ‘वेटिंग फॉर ए वीजा’ में ऐसी घटनाओं का जिक्र किया है, जिससे हिंदू धर्म से उनका मोहभंग हुआ।

बचपन में अंबेडकर के साथ भेदभाव की घटनाएं हुईं। मां की मृत्यु के बाद अंबेडकर अपनी काकी के साथ सतारा में रहते थे। अंबेडकर लिखते हैं- मेरे पिता कोरेगांव के खाटव में सरकारी नौकरी करते थे और खजांची थे, इसलिए हमें देखने के लिए सतारा आना उनके लिए संभव नहीं था। उन्होंने हमें चिट्ठी लिखी कि हम गर्मियों की छुट्टियों में कोरेगांव आ जाएं।

हम कोरेगांव के नजदीकी स्टेशन मसूर उतरे। शाम हो रही थी। हमारे पिताजी ने सवारी भेजने को लिखा था, लेकिन वहां कोई सवारी नहीं पहुंची। कुछ देर बाद स्टेशन मास्टर हमारे पास आया और पूछा यहां क्यों रुके हो।

वहां किराए पर जाने के लिए कई बैलगाड़ियां थीं, लेकिन कोई भी अछूत को ले जाकर अपवित्र होने को तैयार नहीं था। हम दोगुना किराया देने को तैयार थे। आखिरकार एक गाड़ीवान इस शर्त पर तैयार हुआ कि गाड़ी हम खुद हांकेंगे और वो पैदल चलेगा। अंबेडकर लिखते हैं कि मैं तब नौ साल का था। इस घटना की मेरी जिंदगी में बहुत अहमियत है।

‘वेटिंग फॉर ए वीजा’ में अंबेडकर लिखते हैं, ‘जानता था कि मैं अछूत हूं। अछूतों को कुछ अपमान और भेदभाव सहना पड़ता है। मसलन, स्कूल में मैं अपने बराबरी के साथियों के साथ नहीं बैठ सकता था। मुझे एक कोने में अकेले बैठना पड़ता था। बैठने के लिए एक बोरा रखता था। स्कूल की सफाई करने वाला नौकर वह बोरा नहीं छूता था। ऊंची जाति के लड़कों को जब प्यास लगती तो वे नल से पी लेते थे। मैं नल को छू नहीं सकता था।’

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