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विजयादशमी पर रावण का दहन और शस्त्र पूजा की परंपरा है। लेकिन बाड़मेर जिले के समदड़ी कस्बे में इन परंपराओं के अलावा दशहरे पर एक खास रस्म निभाई जाती है। यह रस्म इलाके के ज्योतिषी खेजड़ी का पेड़ पूजकर निभाते हैं।

शनिवार रात को ज्योतिषी खेजड़ी के पेड़ की पूजा करते नजर आए। आचार्य पंडित दिलीप व्यास ने बताया- खेजड़ी का पेड़ लक्ष्मी का स्वरूप माना जाता है। वेद पुराणों के अनुसार ब्राह्मण विजयदशमी के दिन खेजड़ी के वृक्ष की पूजा कर लक्ष्मी पूजन करते हैं।

खेजड़ी के वृक्ष की छाल से हाथों में आने वाले टुकड़ों को लक्ष्मी प्राप्ति माना जाता है। उसी को घर पर ले जाकर प्रतिदिन पूजा की जाती है।

श्रीमाली बाह्मण समाज करता है खेजड़ी पूजा

आचार्य पंडित दिलीप व्यास ने बताया- विजयादशमी पर नए-पुराने हथियारों की मंत्रोच्चार के साथ पूजा की जाती है। शाम को रावण दहन किया जाता है। इसके अलावा ज्योतिषी और श्रीमाली ब्राह्मण विजयादशमी की रात खेजड़ी की पूजा भी करते हैं। यह सदियों पुरानी परंपरा है।

पूजा के बाद पेड़ की छाल हटाई जाती है। छाल के टुकड़ों की घर ले जाकर रोजाना पूजा की जाती है। शनिवार रात समदड़ी कस्बे में खेजड़ी की पूजा की गई। इसे शमी पूजन के नाम से जाना जाता है।

खेजड़ी का पेड़ है लक्ष्मी का रूप

आचार्य पंडित दिलीप व्यास ने बताया- ज्योतिष के अनुसार खेजड़ी के वृक्ष को लक्ष्मी स्वरूप है। वेद पुराण के अनुसार खेजड़ी की पूजा से लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं। खेजड़ी की छाल को लक्ष्मी का आशीर्वाद माना जाता है।

दीपावली पर लक्ष्मी पूजन के दिन भी छाल के टुकड़ों की लक्ष्मी के रूप में पूजा की जाती है। मान्यता है कि इससे धन और समृद्धि मिलती है। भैरव पूजन के बाद मंत्रों के जरिए चार धाम की यात्रा भी की जाती है।

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