भारत आदिवासी पार्टी (BAP) ने उपचुनाव के लिए सलूंबर और चौरासी विधानसभा सीटों पर उम्मीदवारों की घोषणा कर दी है। इस ऐलान के बाद कांग्रेस के साथ चल रही गठबंधन की चर्चाओं पर विराम लग गया है।
इसमें चौरासी विधानसभा सीट पर सभी की निगाहें थीं। ये सीट राजकुमार रोत के सांसद बनने के बाद खाली हुई है। यहां से पार्टी ने जिला परिषद सदस्य अनिल कटारा पर दांव लगाया है।
वहीं, सलूंबर सीट से जितेश कटारा उम्मीदवार हैं। पार्टी ने 2023 के विधानसभा चुनाव में भी इस सीट से कटारा को ही कैंडिडेट बनाया था। वे तीसरे नंबर पर रहे थे।
पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष मोहनलाल रोत ने बताया कि पार्टी ने जनप्रतिनिधि सिलेक्शन प्रणाली के तहत वोटिंग कराई थी। इसके बाद कैंडिडेट फाइनल हुए। सलूंबर सीट भाजपा विधायक अमृतलाल मीणा के निधन के कारण खाली हुई है।
2023 के विधानसभा चुनाव में 50 हजार वोट मिले थे
जितेश को साल 2023 के विधानसभा चुनाव में 51691 वोट के साथ तीसरे नंबर पर रहे थे। पहले नंबर पर बीजेपी के अमृतलाल मीणा और दूसरे नंबर पर कांग्रेस के रघुवीर सिंह मीणा थे। कटारा आदिवासी परिवार से साल 2015 से जुड़े हैं। भील प्रदेश विद्यार्थी मोर्चा में साल 2017 में सराड़ा कॉलेज की कमान संभाली थी।
कटारा ने 2019 में कॉलेज में विद्यार्थी मोर्चा को चुनाव जिताने में अहम भूमिका निभाई थी। जितेश का कहना है कि स्थानीय युवाओं को रोजगार नहीं मिलता, यह बड़ी समस्या है। इसके अलावा ग्रामीण इलाकों में सड़कों का अभाव, शिक्षा, स्वास्थ्य, परिवहन की समस्याएं उनके प्रमुख मुद्दे हैं।
कांग्रेस के लिए फिर कठिन हो सकती है राह
दरअसल, बागीदौरा उपचुनाव और बांसवाड़ा लोकसभा सीट पर कांग्रेस ने बाप को समर्थन दिया था। इसलिए कांग्रेस नेताओं को उम्मीद थी कि बाप इस बार सलूंबर में उम्मीदवार नहीं उतारेगी। कैंडिडेट की घोषणा के बाद कांग्रेस में बेचैनी बढ़ गई है। क्योंकि 2023 के विधानसभा चुनाव में बाप कैंडिडेट के 50 हजार से ज्यादा वोट लेने के कारण कांग्रेस के दिग्गज नेता रघुवीर मीणा हार गए थे। इस बार भी रघुवीर मीणा सलूंबर से टिकट की दावेदारी पेश कर रहे हैं।
चौरासी विधानसभा सीट बाप ने अनिल कटारा (38) को कैंडिडेट बनाया है। वे पहली विधानसभा चुनाव लड़ेंगे। इस सीट से राजकुमार रोत लगातार दो बार चुनाव जीते हैं।
बाप पार्टीे के लिए यह सीट काफी मजबूत मानी जाती है। अनिल कटारा वर्तमान में जिला परिषद सदस्य हैं। वे साल 2016 में भील प्रदेश मुक्ति मोर्चा से जुड़े। वे मोर्चा के प्रदेश प्रचारक भी रहे। पढ़ाई के दौरान वे आदिवासी विचारधारा वाली पार्टी से जुड़े थे।