Contact Information

सिटी कार्यालय: मोटर मार्केट वार्ड नं. 18, नया 23, सरदारशहर चूरू(राजस्थान),
मुख्य कार्यालय: 42, कॉस्मो कॉलोनी, विनायक रेजीडेंसी, विशाली नगर, जयपुर

We Are Available 24/ 7. Call Now.

महल में बैठे बादशाह ने बाहर हो रही जंग का हाल पूछा तो जवाब मिला, ‘बाजीराव ने आब और पानी के जिन्नों को काबू में कर रखा है।’ बादशाह ने यमुना के रास्ते भागने के लिए महल के नीचे नावें मंगवा लीं, लेकिन तभी आगे बढ़ने की बजाय बाजीराव पीछे हटे और राजपूताना इलाकों से होते हुए अजमेर चले गए। इन्हीं पेशवा पर बाजीराव-मस्तानी फिल्म बनी है।

1630 ईसवी में शाहजी और जीजाबाई को शिवनेर के किले में एक बेटा हुआ। नाम रखा गया शिवाजी। शिवाजी के पिता शाहजी निजाम के अधीन पूना के एक छोटे जागीरदार थे। 1630 से 1636 तक, शाहजी युद्धों में व्यस्त रहने के चलते घर से दूर रहे। शिवाजी की परवरिश दादोजी कोंडदेव और मां जीजाबाई की देखरेख में हुई।

हालांकि, इतिहासकार जदुनाथ सरकार कहते हैं कि शाहजी, जीजाबाई से अलग होकर तुकाबाई मोहिते के साथ रहने चले गए थे। तुकाबाई और शाहजी का भी एक बेटा हुआ- व्यंकोजी।

शिवनेर का किला मुगलों के कब्जे में चला गया, तो जीजाबाई और दादोजी शिवाजी को लेकर पुणे चले आए। शिवाजी ने महज 16 साल की उम्र में बाजी पासलकर, तानाजी मालुसरे और येसाजी कंक जैसे लोगों के साथ आदिल शाह के अधीन आने वाले पुणे का तोरण किला जीत लिया।

1646 में दादोजी का निधन हुआ तो छत्रपति शिवाजी ने पिता की जमींदारी पूरी तरह संभाल ली। उन्होंने तोरण के पास एक और किला बनवाया और इसका नाम राजगढ़ रखा। इसके बाद शिवाजी का विजय अभियान शुरू हुआ।

उन्होंने चाकन, पुरंदर और कोंडाना के किलों पर कब्जा किया। पुणे के आसपास की सह्याद्रि पर्वतमाला उनके कब्जे में आ चुकी थी। इसके बाद थाणे के तटीय इलाके पर काबिज मुल्ला अहमद को हराया। उत्तरी इलाके में महुली का किला, कोंकण और रायरी का किला जीता। रायरी को ही बाद में रायगढ़ कहा गया, जो शिवाजी की राजधानी बना।

छत्रपति शिवाजी के अभियानों के चलते आदिल शाह ने उनके पिता शाहजी को गिरफ्तार तक कर लिया, लेकिन शिवाजी नहीं रुके।

नवंबर 1656 में आदिल शाह की मौत के बाद, 18 साल का अली बीजापुर का सुल्तान बना था। सल्तनत का सबसे बड़ा कमांडर था अफजल खान। 7 फुट का अफजल अभी तक किसी से हारा नहीं था। सुल्तान के आदेश पर अफजल खान 20 हजार घुड़सवार लेकर शिवाजी से जंग करने निकला।

अब तक शिवाजी ने इतनी बड़ी सेना से युद्ध नहीं लड़ा था। उनको पता था कि सीधी लड़ाई में अफजल का मुकाबला मुश्किल होगा, इसलिए वे अपनी सेना सहित प्रतापगढ़ के किले में घुस गए। लड़ाई कई दिन अटकी रही तो संधि का रास्ता खुला। आखिरकार 10 नवंबर 1659 के दिन शिवाजी और अफजल खान की मुलाकात हुई।

मराठा इतिहासकार कहते हैं कि अफजल ने शिवाजी से आदिलशाही अधीनता स्वीकारने की बात कही और आगे बढ़कर शिवाजी को गले लगाना चाहा। गले लगते ही उसने खंजर से शिवाजी की पीठ पर वार किया।

छत्रपति शिवाजी तो वार से बच गए, लेकिन उन्होंने बाघ-नख (हाथ में पहना जाने वाला पंजे जैसा हथियार) निकालकर अफजल के पेट पर वार कर दिया। घायल अफजल भागा तो शिवाजी के एक साथी ने उसका सिर कलम कर दिया।

पहला हमला शिवाजी ने किया या अफजल ने, इस पर इतिहासकारों में आज भी मतभेद है। अफजल की मौत के बाद शिवाजी के लोगों ने 3 घंटे में अफजल के 3 हजार सैनिकों को मार डाला।

अफजल की मौत के बाद आदिलशाही कमजोर पड़ गई। शिवाजी ने बिना समय गंवाए फरवरी 1660 तक कोंकण और कोल्हापुर के कई इलाके कब्जा लिए। इस बीच मुगल बादशाह औरंगजेब की निगाह शिवाजी पर थी। उसने अपने मामा शाइस्ता खान को शिवाजी पर हमले के लिए अहमदनगर से पुणे भेजा। शाइस्ता भी शिवाजी को हराने में सफल नहीं हुआ। 1664 में शाइस्ता को पुणे छोड़ना पड़ा।

Share:

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *