अजमेर का तिलोनिया गांव। कभी यहां ट्रेनें रूकती थी। लोग जयपुर, अजमेर, भोपाल तक आते जाते थे। 1873 को यहां रेलवे स्टेशन बनने के साथ ट्रेनों का ठहराव शुरू हुआ था। लेकिन अचानक कोरोना में आय कम होने और डीएफसीसी कॉरिडोर के नाम पर पहले तो स्टेशन तोड़ा फिर ट्रेन बंद कर दी। यह तिलोनिया गांव अजमेर से 40 किमी दूर है और इसके सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन किशनगढ़ है, जो 10 किमी दूर है।
अब गांव वाले ट्रेनों को फिर से ठहराव कराने के लिए हर महीने 15 हजार के टिकट खरीदते हैं, ताकि रेलवे को यहां अच्छा यात्रीभार दिखे। गांव वाले ‘स्टेशन बनवाओ गांव का लौटाओ अभिमान’ अभियान चला रहे हैं। तिलोनिया गांव में रेवाड़ी-अहमदाबाद डीएफसीसी ट्रेक के निर्माण के दौरान 2010 में गांव का स्टेशन तोड़ दिया। तिलोनिया विकास समिति के भागचंद भादू ने बताया कि तिलोनिया का स्टेशन 1873 का है। मालवा रेललाइन बनाई गई थी। उस समय भाप के इंजन होते थे। बुजुर्ग छोटूराम माली ने बताया कि रेलगाडियां यहां से पानी लेती थी। इसलिए गाड़ियां यहां रुकती थी। लेकिन यहीं ट्रेन रुकना बंद हो गई।
ट्रेन का ठहराव नहीं होने से हजारों लोग प्रभावित ग्रामीणों ने बताया कि बुजुर्ग कोरोना से पहले तक तिलोनियां आसपास से रोज करीब 500 लोग किशनगढ़ में मजदूरी, पढ़ाई, खरीददारी व अन्य कामों से आते जाते थे। ट्रेनों का समय जयपुर मारवाड़ शटल (19735-19736) सुबह 8 बजे तिलोनिया पहुंचता था। वापसी में शाम को 7 बजे वापस आता था। जयपुर भोपाल सुबह साढ़े 7 बजे तिलोनिया से जयपुर व शाम साढ़े 7 से 8 के बीच आता था। कोरोनाकाल के पहले तक गांव में दोनों गाड़ियां रुकती थी। लोग इन ट्रेनों से किशनगढ़, जयपुर, अजमेर, उज्जैन जाते थे।
2022 से बंद हुई ट्रेनें 2022 में कोरोना के बाद जब ट्रेनें सामान्य रूप से चलने लगी। गांव में गाड़ियों का ठहराव बंद हो गया। इसके बाद ग्रामीणों ने कई चक्कर काटे फिर डेमू व रेवाड़ी मदार ट्रेन का ठहराव हुआ। लेकिन समय व आवाजाही के हिसाब से दोनों ही ट्रेनें ग्रामीणों की जरूरत को पूरी नहीं करती है। हालांकि इन्हीं के पास लेते हैं।
30 जनवरी 2023 को गांव वालों ने शुरू किया अभियान कोरोना के बाद गाड़ियां सामान्य तरह से शुरू हुई। लेकिन 2022 से दोनों गाड़ियां तिलोनियां में रुकना बंद गई। ग्राम पंचायत समिति सदस्य अरविंद सैन ने बताया कि इसके लिए रेवेन्यू कम होने की बात कही। गांव का रेवेन्यू बढ़ाने के लिए गांव के लोगों के सहयोग से रेलवे के मंथली पास व टिकिट खरीदने लगे। इसके लिए ग्रामीण अपनी इच्छा के अनुसार सहयोग देते हैं। यह हर महीने करीब 15 हजार रुपए के टिकिट लेते हैं। दोनों ट्रेनें आने के दौरान यहां टिकिट की व्यवस्था भी है। गांव वालों ने ट्रेन ठहराव कराने की पहल को लेकर समिति बनाई।
मेंटेन रहता है हिसाब समिति का हिसाब कॉपी में लिखा जाता है। हर महीने कितने रुपए आए, किस घर से कितने रुपए मिले। इसे लिखा जाता है। खर्च के बाद कितने रुपए बचे यह सब जानकारी रखी जाती है। भागचंद भादू ने बताया कि 21 महीनों में अब तक 3 लाख रुपए के टिकिट लिए जा चुके हैं।
हजारों लोग है प्रभावित सरपंच नंदराम भादू ने बताया ट्रेनों बंद होने से फलौदा, भोजियावास, मंडावरिया, चूरली, चूंदड़ी, तोलामाल, हरमाड़ा, नयागांव तक के ग्रामीण प्रभावित हुए। बांदरसिंदरी में सेन्ट्रल यूनिवर्सिटी है। वहां सैकड़ों बच्चे पढ़ते हैं। तिलोनिया में बेयरफुट कॉलेज है। यहां आए दिन देश विदेश से लोग आते हैं। उन्हें अब सड़क से आना पड़ता है। हम तो चाहते हैं हमारी पुरानी ट्रेनें लौटा दो।
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