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अजमेर में ख्वाजा साहब की दरगाह में शिव मंदिर होने का दावा करने वाली याचिका को लेकर देशभर में सियासी बयानबाजी जारी है। इस बीच मामले में पूर्व ब्यूरोक्रेट्स और डिप्लोमैट्स ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखा है।

इस पत्र में कहा गया कि भारत की एकता और अखंडता पर हमला करने वाली ऐसी अवैध और हानिकारक गतिविधियों पर हस्तक्षेप करें। यह भारतीय विरासत पर वैचारिक हमला है। पूर्व ब्यूरोक्रेट्स लॉबी ने अपने पत्र में जिक्र करते हुए पीएम नरेंद्र मोदी को याद दिलाया कि उर्स के मौके उन्होंने भी अजमेर शरीफ में चादर पेश की थी।

पूर्व गवर्नर, सेना के लेफ्टिनेंट जनरल शामिल दिल्ली के पूर्व लेफ्टिनेंट गवर्नर नजीब जंग, यूनाइटेड किंगडम में भारत के पूर्व उच्चायुक्त शिव मुखर्जी, पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त एसवाई कुरैशी, पूर्व उप सेना प्रमुख लेफ्टिनेंट जनरल जमीरुद्दीन शाह और भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के पूर्व डिप्टी गवर्नर रवि वीर गुप्ता सहित कई पूर्व ब्यूरोक्रेट्स और डिप्लोमैट्स ने यह पत्र लिखा है।

उन्होंने इस पत्र के जरिए कहा- कुछ अज्ञात लोग हिंदू हितों के प्रतिनिधित्व का दावा करते हैं। इस दावे के साथ ये लोग मध्ययुगकालीन मस्जिदों और दरगाहों का सर्वे कराने की बात कहते हैं। पूर्व ब्यूरोक्रेट्स और डिप्लोमैट्स ने पत्र में स्पष्ट किया कि प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट 1991 के बाद भी अदालतें ऐसी याचिकाओं को आगे की सुनवाई का अधिकार दे देती हैं।

पत्र में कहा- यह सोच से परे है कि कोर्ट ने सूफी संत ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की 12वीं सदी की दरगाह पर सर्वे का आदेश कैसे दे दिया। यह स्थल केवल मुसलमानों के लिए ही नहीं, बल्कि सभी भारतीयों के लिए पवित्र है। यह सोच हास्यास्पद है कि एक सूफी संत, फकीर, जो भक्ति आंदोलन का अंग रहा, वह कैसे एक मंदिर को तोड़कर दरगाह का निर्माण कर सकता है।

अल्पसंख्यक समुदाय में चिंता और असुरक्षा का भाव पैदा हुआ पत्र में लिखा गया है- काफी समय से यह देखने को मिल रहा है कि हिन्दू और मुस्लिम समुदाय के बीच टकराव की स्थिति पैदा हो रही है। यही नहीं ऐसा ही इसे समुदाय के भी हो रहा है। इससे अल्पसंख्यक समुदाय में चिंता और असुरक्षा का भाव पैदा हुआ है। इस तरह के विवादों से देश तरक्की नहीं कर कता और न ही आपके (पीएम मोदी) विकसित भारत के सपने को पूरा कर पाएगा। यह भारत की सभ्यता पर वैचारिक हमला है, जिसे आप स्वयं जीवित करना चाहते हैं।

पत्र में विभाजन के समय हुए दंगों और पिछले दशकों में हुए विवाद के बारे में याद दिलाते कहा गया कि इससे आज भी देश में सांप्रदायिक संबंध मधुर नहीं हो पाए हैं। पिछले 10 सालों जिस तरह के घटनाएं हुई, वह जैसी थी उस तरह दिखाई नहीं गई। ऐसे मामलों में राज्य सरकारों की पक्षपात की नीतियां देखने को मिली हैं। ऐसा, पहले कभी अनुभव नहीं किया गया था।

मुस्लिमों के घरों को अवैध तरीके से ढहाया गया घटनाओं को लेकर पत्र में जिक्र करते हुए कहा गया कि यह गोमांस ले जा रहे मुस्लिमों को पीटने और धमकाने से शुरू हुआ था। जो धीरे-धीरे निर्दोष लोगों को भीड़ द्वारा घर में घुसकर मार देने में बदल गई। इसमें कई नरसंहार हुए और इस्लामोफोबिया के तौर पर इसे परिभाषित करते हुए भाषणों में उपयोग लिया गया।

राज्यों के मुखिया (मुख्यमंत्रियों) के इशारे पर मुस्लिम समुदाय के लोगों से सामान ना लेने, मकान किराए पर न देने जैसा आह्वान किया गया। यही नहीं मुस्लिमों के घरों को अवैध तरीके से ढहाया गया। इन घटनाओं में करीब 1 लाख 54 हजार परिवार प्रभावित हुए हैं और करीब इतने लोग बेघर भी भी हुए। इन सभी मामलों में ज्यादातर मुस्लिम थे।

लापरवाही के चलते देश को भारी नुकसान झेलना पड़ेगा पत्र में लिखा- ऐसी घटनाओं ने देश ही नहीं बल्कि विदेश में रहने वाले भारतीयों को भी नुकसान पहुंचा है। ये घटनाएं भी जब पर्याप्त नहीं रही तो खुद को हिन्दू समाज का प्रतिनिधि बताने वाले लोगों ने उकसाने का काम शुरू कर दिया। इसी का परिणाम है कि आज देश में माहौल ठीक नहीं है। पत्र में पूर्व ब्यूरोक्रेट्स और डिप्लोमैट्स ने आग्रह किया कि वे (पीएम मोदी) ही अकेले ऐसे हैं, जो इन सब घटनाओं को रोक सकते हैं। वे राज्यों के मुखिया (मुख्यमंत्री) और प्रशासकों से कहें कि कानून और संविधान की पालना की जाए। ऐसी मामलों पर संवेदनशील रहे और कर्तव्यों का पालन करें, जिसकी उन्होंने शपथ ली है। अन्यथा लापरवाही के चलते देश को भारी नुकसान झेलना पड़ेगा।

पत्र में मांग करते हुए कहा- आपकी (पीएम मोदी) अगुवाई में एक सर्व धर्म बैठक की आवश्यकता है। जहां आपको (पीएम मोदी) को भारत के प्रधानमंत्री के रूप में यह संदेश देना चाहिए कि भारत सभी की भूमि है, जहां सदियों से सभी धर्म एक साथ और सद्भाव के साथ रहते आए हैं। किसी भी प्रकार की सांप्रदायिक ताकतों को देश की एकता और सौहार्द पर हमला करने की अनुमति नहीं दी जाएगी। महोदय, समय कम है और हम आपसे आग्रह करते हैं कि आप सभी भारतीयों, विशेषकर अल्पसंख्यक समुदायों को आश्वस्त करें कि आपकी सरकार सांप्रदायिक सौहार्द, सद्भाव और एकता बनाए रखने के अपने संकल्प पर अडिग है।

संविधान के अनुसार सबको दावा करने का अधिकार: राठौड़ पूर्व नेता प्रतिपक्ष राजेंद्र राठौड़ रविवार को एक दिवसीय अजमेर दौरे पर रहे। इस दौरान उन्होंने सर्किट हाउस में मीडिया से बात करते हुए कहा- सूफी संत ख्वाजा मोइनुद्दीन हसन चिश्ती की दरगाह को लेकर कोर्ट ने जो आदेश दिए हैं, अभी एडमिशन की स्टेज पर है।

राठौड़ ने कहा- अभी एडमिशन भी नहीं हुआ है और यह मामला चाय के प्याला में तूफान जैसा है। इस बात को आगे नहीं बढ़ाना चाहिए। कोर्ट का जो भी निर्णय होगा, वह सब को मानना चाहिए। केवल नोटिस जारी किए गए। भारतीय संविधान के अनुसार हर भारतीय को कोर्ट में दावा पेश करने का राइट दिया गया है। दावा पेश करने पर कोर्ट ने पक्षकारों से जवाब मांगा है। इसके लिए नोटिस दिए गए हैं।

कोर्ट पर सबको भरोसा करना चाहिए: केंद्रीय मंत्री केंद्रीय मंत्री भागीरथ चौधरी ने रविवार को अजमेर में एक शिलान्यास कार्यक्रम के दौरान कहा- दरगाह को लेकर जो याचिका दायर की गई है, उसमें कोर्ट का जो फैसला आएगा, वह सभी को मान्य होगा। कोर्ट पर सबको भरोसा करना चाहिए।

चौधरी ने कहा- भारतीय संविधान में हर नागरिक को अपनी बात रखने का हक है। कोर्ट ने इसके लिए नोटिस भी जारी किए हैं और जो कोर्ट सुनवाई के बाद फैसला देगी, उस पर सबको विश्वास होना चाहिए।

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