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राजस्थान के दौसा जिले में 3 दिन से बोरवेल में फंसे 5 साल के मासूम आर्यन की मौत हो गई। आर्यन को करीब 57 घंटे बाद बुधवार रात 11:45 बजे बोरवेल से बाहर निकाला गया था। उसे एडवांस लाइफ सपोर्ट सिस्टम से लैस एम्बुलेंस से हॉस्पिटल ले जाया गया। जहां उसे मृत घोषित कर दिया।

160 फीट गहरे बोरवेल में 147 फीट पर फंसे आर्यन को निकालने के लिए सोमवार शाम 5 बजे से बुधवार रात 11.45 बजे तक रेस्क्यू ऑपरेशन चलाया गया। 8 बार कोशिश की। इसके बावजूद उसे बचाया क्यों नहीं जा सका? क्या रेस्क्यू ऑपरेशन में चूक थी?

पहले जानिए कैसे हुआ हादसा?

आर्यन सोमवार (9 दिसंबर) को दोपहर तीन बजे घर से करीब 100 फीट दूर बोरवेल में गिर गया था। वह मां के साथ ही खेल रहा था। जब तक उसकी मां उसे पकड़ पाती, वह बोरवेल में फिसल गया। परिवार ने ये बोरवेल करीब तीन साल पहले खुदवाया था। हालांकि, इसमें मोटर फंसने के कारण यह काम नहीं आ रहा था, लेकिन इसे बंद नहीं करवाया गया था। हादसे की जानकारी मिलते ही सिविल डिफेंस, एसडीआरएफ और इसके बाद एनडीआरएफ की टीमें मौके पर पहुंची और आर्यन के रेस्क्यू की कोशिशें शुरू की।

सबसे पहले आर्यन को फंसने वाली जगह पर ही सिक्योर करना जरूरी था

आर्यन को बाहर निकालने में इतनी देरी क्यों हुई? इस सवाल का जवाब जानने के लिए भास्कर रिपोर्ट ने रेस्क्यू ऑपरेशन को लीड कर रहे एनडीआरएफ प्रभारी योगेश कुमार से बात की।

एनडीआरएफ प्रभारी योगेश कुमार ने बताया- 160 फीट गहरे बोरवेल में आर्यन 147 फीट पर फंसा था। नीचे नौ फीट पानी था। ऐसे में सबसे पहले ये सुनिश्चित करना था कि रेस्क्यू के दौरान किसी भी हालत में आर्यन खिसककर नीचे पानी में न गिर जाए।

योगेश कुमार ने बताया कि बच्चे को सिक्योर करने के लिए रात 1 बजे एल(L) शेप सपोर्ट को नीचे उतारा गया। यह एक लोहे की पत्ती होती है जिसे कुर्सी की तरह काम लिया जाता है। जहां आर्यन फंसा था, उससे नीचे भेजकर इसे खोलना था, ताकि अगर वह नीचे फिसले तो इसमें फंस जाए और पानी में न गिरे।

एल सपोर्ट को नीचे भेजा तो वह सेट नहीं हो पाया। टीम के सामने सबसे बड़ी समस्या थी कि बोरवेल की ऊपर से चौड़ाई 8 इंच और नीचे जाकर 16 इंच थी। ऐसे में 2 बार कोशिशों के बावजूद एल सपोर्ट फिट नहीं हो पाया।

छाते जैसा सपोर्ट भी भेजा गया

जब रात में एल सपोर्ट के जरिए कोशिश की जा रही थी, तभी दूसरे अल्टरनेट अंब्रेला शेप का भी काम शुरू कर दिया गया था। एनडीआरएफ प्रभारी योगेश कुमार ने बताया- रात को 2 बजे हमने हमने स्थानीय मिस्त्री से अंब्रेला शेप में सपोर्ट बनवाने का काम शुरू करवा दिया था।

एल शेप सपोर्ट फिट नहीं हुआ तो अंब्रेला सपोर्ट नीचे डाला गया। इसमें भी समय लगा। बार-बार कैमरा अंदर डाल रहे थे तो गहराई के चलते वह भी स्टेबल नहीं हो रहा था।

दरअसल, अंब्रेला सपोर्ट में लोहे की कई पत्तियां लगी होती हैं, जो एक छाते की तरह ही खुलती है। इसे रस्सी और रॉड की मदद से खोलते हैं। पहली बार में सफलता नहीं मिली। इसके बाद दोबारा सुबह 11 बजे अंब्रेला सपोर्ट को नीचे भेजा गया। इस बार यह सपोर्ट काम कर गया और नीचे जाकर खुल गया और आर्यन से कुछ ही दूरी पर नीचे फिट हो गया था। ऐसे में अब उसे नीचे गिरने का डर खत्म हो गया था।

इस प्रक्रिया में समय इसलिए लगा क्योंकि अंब्रेला सपोर्ट को रॉड की सहायता से नीचे भेजा जाता है। एक रॉड दस फीट की होती है। डेढ़ सौ फीट नीचे तक करीब सोलह रॉड लगती है, उन्हें एक-एक कर नीचे भेजना पड़ता है। एक को नीचे भेजकर दूसरा उसमें ज्वाइंट करना पड़ता है कसना पड़ता है। ऐसे में समय लगता है।

मशीन-दीवार के बीच में फंसे थे बच्चे के हाथ-पैर

बच्चे को रिंग शेप उपकरण से बाहर निकालने की कोशिश हुई, लेकिन नाकाम रही। इसका बड़ा कारण यह रहा कि बच्चा ढोली मशीन और मिट्टी की दीवार के बीच फंसा था। उसके हाथ और पैर मशीन व पास से निकल रहे पाइप के बीच में थे।

रेस्क्यू टीमों के लिए आर्यन को बाहर निकालने के लिए जरूरी था कि उसके हाथ या पैर का कोई हिस्सा लॉक हो यानी कि अंदर रिंग शेप में भेजे गए उपकरण के साथ भेजी गई रस्सी से बंध जाए ताकि उसे ऊपर खींचा जा सके।

बच्चे के हाथ और पैर के हिस्से में रस्सी नहीं बंध पा रही थी। रिंग शेप उपकरण को बार बार नीचे भेजकर कोशिश करते रहे लेकिन बार-बार यही दिक्कत आ रही थी। इसके अलावा इस प्रक्रिया में समय भी लग रहा था।

एनडीआरएफ कमाडेंट विकास सिंह ने बताया- इसके बाद जे(J) शेप का उपकरण नीचे भेजा गया ताकि बच्चे के हाथ को सीधा किया जा सके। जहां तक रस्सी की पहुंच आसान हो जाए। इसमें सफलता मिली। बच्चे के हाथ को हमने ऊपर की तरफ कर दिया। एक बार तो बच्चे की हथेली तक रस्सी भी पहुंच गई लेकिन रिंग शेप में बांधी रस्सी पहले ही खुल गई और हाथ को कवर नहीं कर सकी। इस वजह से यह तरीका भी फेल हो गया। हालांकि इस तरीके से ही बार बार कोशिश की जाती रही।

समुंद्र में पुल बनाने वाली मशीन से खुदाई

एक तरफ तो एनडीआरएफ की टीम बोरवेल के ऊपर से ही बच्चे को बाहर निकालने की कोशिश कर रही थी। वहीं दूसरे प्रयास भी किए जा रहे थे। इसके लिए बोरवेल से एक तरफ कुछ दूरी पर खुदाई का काम शुरू करवाया गया।

सोमवार रात से ही खुदाई का काम शुरू कर दिया गया था ताकि वहां से बोरवेल तक सुरंग बनाई जाए। इसके लिए सवाई माधोपुर से पाइलिंग मशीन भी मंगवाई गई। यह मशीन समुंद्र में पुल बनाने के दौरान पिलर खडे़ करने और बनाने में काम आती है।

मंगलवार रात को यह मशीन पहुंच गई थी। रेस्क्यू टीमों ने तय किया कि बोरवेल के बिल्कुल पास ही पैरलल सुरंग बनाई जाए और रेट माइनिंग तकनीक तक बच्चे तक पहुंचा जाए। करीब 110 फीट तक की खुदाई भी कर दी गई। 110 फीट की खुदाई के बाद मशीन में भी तकनीकी दिक्कत आ गई। जिसके बाद सुरंग का काम फिर रूक गया और दूसरी मशीन बुलाई गई। दोपहर में दूसरी पाइलिंग मशीन मौके पर पहुंची जिसके बाद उसे इंस्टाल किया गया और फिर सुरंग खोदने का काम शुरू हुआ।

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