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जयपुर, फरवरी 2024 में दौसा निवासी सचिन (25) को प्रदेश के सबसे बड़े अस्पताल सवाई मानसिंह (SMS) में ‘ओ’ पॉजिटिव की जगह ‘एबी’ पॉजिटिव ब्लड और प्लाज्मा चढ़ा दिया गया था। नतीजा ये हुआ कि सचिन की मौत हो गई। ठीक वैसी ही लापरवाही अब बच्चों के सबसे बड़े अस्पताल जेके लोन में सामने आई है।

भरतपुर निवासी 10 साल के मुस्तफा को इमरजेंसी में यहां लाया गया था। किडनी की जन्मजात बीमारी रीनल हाइपोप्लासिया (अविकसित किडनी) से जूझ रहे मुस्तफा को ‘ओ’ पॉजिटिव ब्लड की जरूरत थी। लापरवाहों ने उसे ‘एबी’ पॉजिटिव ब्लड चढ़ा दिया। हालांकि मुस्तफा की हालत अभी स्थिर बताई जा रही है। लेकिन, 5 दिसंबर को हुई इस घटना पर तीन बाद कमेटी गठित करने के बावजूद अस्पताल प्रशासन अभी तक यह तय नहीं कर पाया है कि लापरवाह कौन है?

भास्कर ने इस मामले में पड़ताल की। ब्लड बैंक ने बेसिक मेडिकल प्रोटोकॉल तक फॉलो नहीं किया। गंभीर स्थिति में भर्ती बच्चे को रातभर ब्लड के लिए इंतजार कराया गया और अंततः अगले दिन जो ब्लड दिया गया, वह गलत ग्रुप का था।

1. डोनर नहीं था, लेकिन इमरजेंसी के बावजूद 12 घंटे बाद दिया ब्लड

मुस्तफा के चाचा सरफू और तालिम ने बताया कि 4 दिसंबर को भरतपुर से मुस्तफा को गंभीर हालत में जयपुर के जेके लोन हॉस्पिटल में रेफर किया गया था। उसे सांस लेने में बहुत दिक्कत हो रही थी। दोपहर 3:30 बजे जेके लोन हॉस्पिटल पहुंचने पर उसे पहले इमरजेंसी, फिर ओल्ड आईसीयू में भर्ती किया गया था। लगातार कंडीशन खराब होने के बाद उसे रात करीब 10 बजे ग्राउंड फ्लोर पर आईसीयू में शिफ्ट किया गया। यहां रेजिडेंट डॉक्टर ने मुस्तफा के ब्लड का सैंपल लिया था।

सैंपल और डिमांड पर्ची लेकर तालिम रात 10 बजे ब्लड बैंक से खून लेने पहुंचा। आवाज लगाई तो कंबल ओढ़कर सो रहा एक कर्मचारी उठा। तालिम ने ब्लड बैंक कर्मी से जब ब्लड उपलब्ध कराने को कहा तो उसने उन्हें पहले डोनर लाने को कहा। रिक्वेस्ट करने और बार-बार इमरजेंसी बताने के बाद भी उसने डोनर लाने का कहकर दुत्कार दिया। डोनर लाने के 12 घंटे बाद ब्लड दिया गया।

लापरवाही क्या? : यहां ब्लड बैंक में उस रात ड्यूटी पर मौजूद कर्मचारी ने मरीज की इमरजेंसी को न समझते हुए पहले डोनर लाने का दबाव बनाया। समय से खून न मिलने से 10 साल के गंभीर रोगी की जान भी जा सकती थी। ब्लड की सख्त जरूरत थी, वह 12 घंटे बाद मिला। नियमानुसार गंभीर मरीजों के इलाज में ब्लड तुरंत उपलब्ध करवाना अनिवार्य है।

2. ‘ओ’ पॉजिटिव की जरूरत थी, थमाया ‘AB’ पॉजिटिव

बच्चे के चाचा दिलशाद ने बताया कि इसके बाद मैं करीब पौने दो बजे पास के ही शेखावाटी ब्लड बैंक गया। वहां भी ब्लड नहीं मिला। इसके बाद मैं निराश होकर सैंपल और डिमांड पर्ची सरफू को देकर कमरे पर आ गया। अगली सुबह 10:30 बजे दो डोनर लेकर आया। फिर वही सैंपल लेकर काउंटर पर गया। डोनर के ब्लड देने के करीब 1 घंटे बाद ब्लड बैंक ने जो ब्लड दिया, वो लेकर वार्ड में आ गया। जिस पर एबी पॉजिटिव अंकित था, जबकि मुस्तफा का ब्लड ग्रुप ‘ओ’ पॉजिटिव था। 5 दिसंबर को डॉक्टर ने भी बिना देखे मुस्तफा को वही ब्लड चढ़ा दिया।

मैंने उसका फोटो भी खींचा था ताकि आगे ब्लड की जरूरत पड़े तो डोनर ढूंढा जा सके। 7 दिसंबर को जब दूसरी बार ब्लड की जरूरत पड़ी, तब खुलासा हुआ कि बच्चे काे गलत ग्रुप का ब्लड चढ़ा दिया है।

लापरवाही क्या?: यह दूसरी और गंभीर लापरवाही थी। दरअसल, वार्ड से जब ब्लड की डिमांड आती है तो वॉयल पर लिखी मरीज की पूरी जानकारी पढ़ने के बाद ब्लड का ग्रुप और जारी किए जाने वाले बैग का क्रॉस मैच किया जाता है ताकि सुनिश्चित किया जा सके कि यह ब्लड मरीज के लिए उपयुक्त है या नहीं। रिपोट्‌र्स को ब्लड बैंक का डॉक्टर डबल वेरिफाई करता है। लैब में आए सैंपल के आधार पर ही ब्लड दिया जाता है। यहां वार्ड से सैंपल के गलत आने की आशंका ज्यादा है।

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