राजस्थान

भारत-अमेरिकी सेना ने एक-दूसरे के हथियारों की तकनीक को समझा:भारतीय सेना फायरिंग और आर्टिलरी ट्रेनिंग दे रही

बीकानेर के महाजन फिल्ड फायरिंग रेंज में दुनिया की दो बड़ी सैन्य शक्तियां युद्धाभ्यास कर रही है। भारत और अमेरिका की सेना के जवान 15 दिन तक दुश्मनों को मार गिराने की रणनीति बनाते हुए हथियारों के साथ अभ्यास करेंगे। जवानों को सुबह पांच जगा दिया जाता है। इसके बाद रात के घने अंधेरे तक हथियारों की बारीकियों से रूबरू करवाया जा रहा है।

सैन्य प्रवक्ता लेफ्टिनेंट कर्नल अमिताभ शर्मा ने भास्कर को बताया- युद्धाभ्यास से पहले जवान सुबह जिम करते हैं। उसके बाद खुले मैदान में करीब एक घंटे तक व्यायाम करते हैं। व्यायाम के बाद युद्धाभ्यास के लिए आने के लिए सिर्फ एक घंटे का समय दिया जाता है। सैन्य वर्दी पहनकर और हाथों में हथियार लेकर जवानों के आते ही युद्धाभ्यास का सेशन शुरू हो जाता है।

भारतीय जवानों ने अपने रायफल के बारे में अमेरिकी जवानों को बताया। न सिर्फ इन हथियारों को चलाने का तरीका बल्कि इनकी तकनीक भी एक-दूसरे के साथ साझा की जा रही है। फिलहाल कुछ दिन तक दोनों देशों के जवान फायरिंग और सामान्य ट्रेनिंग में हिस्सा लेंगे।

दुश्मन का काल्पनिक ठिकाना बनाया अमेरिका के जवान अपने साथ हाई मोबिलिटी आर्टिलरी रॉकेट सिस्टम और एम777 हॉवित्जर गन लेकर आए हैं। इन दोनों की ट्रेनिंग भारतीय जवानों को दी जा रही है। अभ्यास के दौरान रेंज में जगह-जगह फायरिंग की जा रही है। इसके लिए जवानों को पहले काल्पनिक दुश्मन का ठिकाना बताया जा रहा है। जहां पूरी सावधानी बरतते हुए भारतीय जवान और अमेरिकी जवान पहुंच रहे हैं। एम 777 हॉवित्जर तोप के माध्यम से इन ठिकानों पर निशाने साधे जा रहे हैं। माइनस डिग्री में काम करने वाले अलास्का के ये अमेरिकी जवान मंगलवार को महाजन फिल्ड फायरिग रेंज में प्लस 36 डिग्री तापमान में निशाने साधते नजर आए।

भारतीय सेना फायरिंग और आर्टिलरी ट्रेनिंग दे रही भारत की पैदल सेना सुबह जल्दी फायरिंग व आर्टिलरी ट्रेनिंग दे रही है। भारत की 9 राजपूत इन्फेंट्री सेना है। जिसके पास पैदल जवान के हथियार है। जिसमें एनसास रायफ़ल्स महत्त्वपूर्ण है। इस रायफल के अलावा भारतीय जवान छूरा व अन्य हथियारों से दुश्मन को मारने की ट्रेनिंग भी अमेरिकी जवानों को दे रहे हैं। भारतीय पैदल सेना के पास रायफल ही सबसे बड़ा हथियार है। ये जवान खुद को छिपाते हुए दुश्मन पर नजर रखने और उन्हें करीब तक जाकर मारने की ट्रेनिंग दे रहे हैं।

अंतिम 72 घंटे में काल्पनिक युद्ध

शुरूआत में दोनों देशों के जवान सामान्य ट्रेनिंग लेंगे। धीरे-धीरे एक-दूसरे के हथियारों को चलाने के साथ ही समन्वय भी स्थापित करेंगे। इसके बाद भारतीय इंफेंट्री और अमेरिका की सेना एयर बोन 1-24 आर्कटिक डिवीज़न एक साथ मिलकर दुश्मन के काल्पनिक ठिकानों पर एक साथ हमले करेंगे। युद्धाभ्यास के अंतिम 72 घंटे एक युद्ध की तरह होंगे, जहां सीखे गए सभी तरीकों को आजमाया जाएगा।

अमेरिका के हाई मोबिलिटी आर्टिलरी रॉकेट सिस्टम (HIMARS) का उपयोग भी उसी समय होगा। इसकी मारक क्षमता 310 किलोमीटर है लेकिन कम दूरी पर काल्पनिक ठिकाने तय करके हमले किए जाएंगे। ये दूरी सौ किलोमीटर से ज्यादा हो सकती है।

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